अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Thursday, April 22, 2010

"अधबनी लड़की कि दुहाई"

कन्या भ्रूण को पैदा होने से पहले ही मार देना प्रगतिशीलता की देन है जिसे तकनीकी तरक्की ने आसान बना दिया है. लोग उसी डाल को काट रहे हैं जिस पर बैठे हैं. मूर्खता ही नहीं यह एक शर्मनाक कर्म है. इंसान के बनाये कानून का ही उल्लंघन ही नहीं, खुदा के कानून का भी उल्लंघन है





"अधबनी लड़की कि दुहाई है ।
माँ के कोख से ये आवाजआई है ।
सुनकर किस का ना दिल पिघल जाय।
माँ बापू क्यू बने हो हरजाई।
मरने के पहले ...........
मै आपन कातिल से थोडा गुफ्तगुं कर लूं
मेरे दिल से उठी ये घोर व्यथा है ।
मै तो तुम्हारे प्यार कि निशानी हु,
बापू ! तुम तो इस बाग़ के माली हो।
फिर मुझे फूल बनने से क्यूँ रोकते हो?
बाहर कि सुगबुगाहट से जाहिर है ,
अब मेरा क़त्ल होने वाला है ।
कल डॉक्टर माँ को सूई चुभोने वाला है ।
माँ बापू कि जिद्द ये कहती है ,
कि मै ये दुनिया नहीं देख पाऊँगी।
हाय!मैं फरियाद करू भी तो किससे?
मै तो रो भी नहीं सकती कोख में ,
रोता ओ वो है जो जनम लेकर बहार आता है ।
अपने इस सोच को बदल बापू!
मुझे भी जीने का एक मौका दे दो बापू!
इस दुनिया में तेरा नाम करुँगी ।
हे! माँ तू इतनी कठोर ना बन
अपना दूधऔर आँचल के छाओं से दूर ना कर ।
बस एक बार लड़की कि माँ देख बनकर
बस एक बार लड़की कि माँ देख बनकर ।।
*भूण परीक्षण पर हो रहा खेल इस कडवी सच्चाई को और भी सामने लाता है । सरकार भले ही कितने नियम कानून बना ले अगर हमारे दिल मे लडका और लडकी मे अन्तर समा चुका है तो उसे कोई भी कानून बदल नही सकता । आवशकता है हमारी सोच , हमारी विचारधारा मे बदलाव की ।



No comments:

Post a Comment