अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Friday, July 15, 2011

"किस बात का रोना है"

तुम जो कहते हो मै "फूल" हूँ
दो दिन में 'झर' जाउंगी
हाँ, मै 'फूल' हूँ
दो दिन में 'झर' जाउंगी
पर जाने से पहले खुशबु बन
फिजाओं में बिखर जाउंगी
तुम जो 'शाख' हो
तुम किधर जाओगे
सूखने के बाद
चिताओं में 'राख' हो जाओगे
राख तुम्हे भी होना है
खाक मुझे भी होना है
तो प्यारे .......
फिर किस बात का रोना है ....:)
~~~S-ROZ~~~

1 comment:

  1. यूँ देखें तो कुछ भी शाश्वत नहीं है....

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