अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Monday, October 10, 2011

ए ग़ज़ल ......................आज तो तू बेवा हो गयी

तुझको देखा तो नहीं,
महसूस किया है मैंने
जिंदगी से दर्द ही मिले
हौसले से जिया तुमने
बगैर शिकायत किये
तनहाइयों के साथी थे तुम
जख्म ए दिल के मरहम थे तुम
ग़ज़लों को नए मानी दे कर कहाँ हो गए गुम
....
आँखों से रोना जाना था दिल कैसे रोता है आज जाना है ..."जगजीत जी" आप कभी रुखसत हो ही नहीं सकते सबके दिलों में जीतें हैं आप !अमर हैं आप!!
.
हुआ  रुखसत  आवाज और साज़ से सजाने वाला
ए ग़ज़ल ......................आज तो तू बेवा हो गयी
~~S-ROZ~~
 

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