अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Tuesday, November 8, 2011

"गुनगुनी धूप "

 
इस पहर की ,गुनगुनी  धूप
मेरे चौखट पर,यूँ आई है
जैसे तेरे प्यार की ,परछाई है
तन में तपन है ,नेह का सृजन है
लगता है ऐसे ,संग सजन है
इस पहर की ,गुनगुनी धूप
जो अब जाने को है
क्या कल फिर आयेगी ?
बीते  सुहाने एहसासों को
क्या फिर से जगाएगी ?
~~~S-ROZ~~~
 
 

1 comment: