अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Thursday, October 13, 2011

'नजूमी' ने कहा था"

बहुत पहले ......
किसी 'नजूमी' ने कहा था 
तुम्हारे  हाथों  में ...
उम्र कि लकीर बड़ी छोटी है
हमने यकीं ना किया
उसकी बात पर
पर बगैर जिस्म के  
मेरे भीतर का  शख्स  
जाने कितनी बार मरता रहा  
ख़ुदकुशी करता रहा  
पर बड़ा ढीठ शख्स निकला  
लडखडाता फिर उठ खड़ा हुआ 
जिंदगी की मुश्किलातों  से
जूझने को ....
'नजूमी' ने शायद ........
इस "नीम जिंदा" जिंदगी को
जिंदगी कि लकीर  में
शामिल नहीं किया था !
~~~S-ROZ~~~
नीम जिन्दा=अर्धजीवित
नजूमी=ज्योतिषी
 
 
 

Monday, October 10, 2011

ए ग़ज़ल ......................आज तो तू बेवा हो गयी

तुझको देखा तो नहीं,
महसूस किया है मैंने
जिंदगी से दर्द ही मिले
हौसले से जिया तुमने
बगैर शिकायत किये
तनहाइयों के साथी थे तुम
जख्म ए दिल के मरहम थे तुम
ग़ज़लों को नए मानी दे कर कहाँ हो गए गुम
....
आँखों से रोना जाना था दिल कैसे रोता है आज जाना है ..."जगजीत जी" आप कभी रुखसत हो ही नहीं सकते सबके दिलों में जीतें हैं आप !अमर हैं आप!!
.
हुआ  रुखसत  आवाज और साज़ से सजाने वाला
ए ग़ज़ल ......................आज तो तू बेवा हो गयी
~~S-ROZ~~
 

Wednesday, October 5, 2011

"मुद्दत हुई "

बहुत मशरूफ सा रहने लगा है या के कोई रंज है
मुद्दत हुई कायदे से कोई हिचकी आए!
ना आफताब निकला,ना शमा जली ना ही चाँद है
मुद्दत हुई कायदे से घर में रौशनी आए !
ना ही दिलखुश मंजर है,ना ही तेरी गुलज़ार बातें हैं
मुद्दत हुई कायदे से लब पे कोई हँसी आए!
रुसवा जो हुई ख़ुशी मेरे दर से और रातें भी ग़मगीन है
मुद्दत हुई कायदे से मेरी जिंदगी में जिंदगी आए !
~~~S-ROZ~~~