अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Thursday, February 21, 2013

"कंचे "किरणों के"

आज सूरज की धूप को, सूप में फटकर 
कुछ चमकीली किरणे छांट कर
 कांच में पकाकर ...
चमकीले ,रंग बिरंगे कंचे बना लिए हैं 
रात के गहराते ही 
अपने लॉन में ,संग उनसे 
 तसल्ली से  कंचे खेलूंगी 
कित्ती मिन्नतें की थी मैंने
उस निगोड़े "चाँद" की 
कि कभी तो आ जा सितारों को साथ लिए 
मेरे कने ...............पूरी रात 
बैठ हम तुम सितारों से कंचे  खेलेंगे 
पर ना जी ...............
साहेब को तो चांदनी संग ही अठखेलियाँ ही भातीं  हैं 
किसी दिन ज़िद  पर आ गई तो 
इन्ही किरणों को बुनकर अपना चाँद भी बना लुंगी 
हां नहीं तो ............!
~s-roz~
 
 

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