अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Tuesday, July 2, 2013

ऐ "ताज" तुझे हम कुछ इस नजरिये से देखते हैं "

बे-पनाह खूबसूरती "ताजमहल"की
तस्वीरें जब बयां करने लगती हैं
तब "ताज" मेरी जानिब
सोच का एक कंकड़ फैंकता है
जो कुछ यूँ एहसास कराता है के
"संग-ए-ताज़ "को मरमरी बनाने में
जाने कितने ही "संगसाजों" ने
अपनी महबूबाओं के मरमरी गालों को
खुरदरे हाथों से खुरदरा किया होगा
तभी शायद, रहम दिल शहंशाह ने
कटवा दिए होंगे उनके हाथ ....!
वो तो यमुना थी ....
जो गर्क कर ले गयी पसीने उनके
वरना वहां एक समंदर रहा होता
वो जो "मुमताज़" है
एहसास से परे,मकबरे में सोई है
इस जहाँ से मुख्तलिफ़,किसी और जहाँ में खोई है
उसे भी क्या, इन वाक़यातों का इल्म हुआ होगा ?
उसे तो बस शाहजहाँ के प्रेम ने छुआ होगा
अब तो ये दुनिया की तीसरी मशहूर इमारत है
गैर मुल्की सैलानी भी इसके दीदार को आते है
प्रेमी युगल चाव से वहां तस्वीरें खिंचवाते हैं
हमने आजतलक नहीं देखा है ये "ताजमहल"
बस एक तमन्ना रही है दिल में
गर जो कभी, देखूं भी तो
आंखे बंद किये उसकी मरमरी दीवारों को कुछ यूँ सहलाऊं
के "उनके" रुखसारों पर उभरे,खराशों का एहसास कर पाऊं !!!!
~s-roz~

(आज "दैनिक भाष्कर" में खबर "ताजमहल तीसरा विख्यात स्मारक " पढ़ते हुए हुए उभरे कुछ ख्याल! यूँ तो
विद्रोही शायर "साहिर" ने कहा है कि इक "शहंशाह ने बनवा के हसीं ताजमहल , हम गरीबों की मुहब्बत का उड़ाया है मज़ाक ....मेरी महबूब कहीं और मिला कर मुझसे...............
और दूसरी जगह कहते हैं कि.. इक शहंशाह ने बनवा के हसीं ताजमहल,
सारी दुनिया को मोहब्बत की निशानी दी है .........:) )

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