अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Friday, August 16, 2013

जिनगी बीत गईल ..(भोजपुरी ग़ज़ल )


 जिनगी बीत गईल, एगो इहे आस में
कब चैन के सांस आई,हमरे सांस में !

कईसे पकाईं खीर, जिनगी के आंच में
फाटल दूध खुसी के,दुःख के खटास में !

दिनवा भरवा सुरुजवा,खूब तपावे हमके

सेकिला घाव आपन चंदा के उजास में !

हमार अरजवा उनके,एकहू न सुनाला
ना रहल जोर वईसन हमरे अरदास में !

सोझा से ना,टेढ़ा अंगूरी से काम बनेला
तबेसे लागल बानी,हमहूँ इहे परयास में !
~s-roz~

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