अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Wednesday, February 26, 2014

"वो कौन है"

वो कौन है जो 
घने अँधेरे में 
गुमसुम सा 
ख़ामोश सदा देता है 
सिलसिला लम्हों का 
सदियों सा बना देता है

वो कौन है जो 

मेरी सहमी हुई 
साँसों की रास 
थामे हुए चल रहा है
उससे मिलने को मगर 
मन मचल रहा है 

वो कौन है जो 
अपने ना होने पर भी 
अपना वजूद 
थमा देता है
हर इक अक्स पर 
नक़्श अपना जमा देता है 

जाने किस सम्त से 
हवा बह कर आई है 
मेरे कानो में फुसफुसाई है 
वो तो तेरी जाँ भी नहीं
उसके मिलने का 
इम्काँ भी नहीं

सुनकर, मेरे 
पलकों की सलीबो पर 
झूलने लगते हैं ख़्वाब
चांदनी नींद को 
लोरी गा के सुला देती है 
रातें बिस्तर पर 
कांटे उगा देती है 
और नींद .....नींद से उठकर 
मुझे सुलाने, आती नहीं 
... आती ही नहीं !

~s-roz~
इम्काँ = संभावना

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