अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Wednesday, April 16, 2014

सीधी दुनिया

काल वृक्ष की डाल पर 
लटके चमगादड़ों को 
दुनिया कभी .....
सीधी दिखे भी तो कैसे ?
सीधी दिखने के लिए 
होना जो होगा 
उन्हें भी सीधा 

~s-roz~

3 comments:

  1. इसीलिए तो वो चमगादड़ ही रह गये...

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  2. आभार राजेन्द्र जी

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  3. आभार वाणभट्ट जी

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