अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Monday, June 27, 2016

ग़ज़ल

बरसा तो खूब जम कर शब भर पानी
फिर भी तिश्नगी लब पर छोड़ गया है

गुल पत्ते बूटे शाख शजर हैरां हैरां से
ये कौन हमें बे मौसम झिंझोड़ गया है

बिछड़े पत्ते फिर न बैठ पायेंगे शाखों पे
ठीकरा इसका गैरों के सर फोड़ गया है 

दिल के गर्द-ओ-गुबार यूँ उड़ते नहीं देखे
गोया कारवां भी रुख अपना मोड़ गया है
s-roz

Sunday, June 26, 2016

पंपोर हमले में शहीद हुए वीर सपूतों को नम आँखों से भावभीनी श्रद्धांजलि ...

साथी ......
जब मुझको घर ले जाओगे 
जाहिर है 
माँ का सीना छलनी होगा 
मेरी वर्दी से उसका सीना ढक देना

जब वो 
अपना सिन्दूर पोछेगी 
मेरे खत 
उसके हाथों पर धर देना

वो नन्हा 
हौले से मेरी ताबूत खोलेगा 
'पापा को नींद जगाओ मम्मी' वो बोलेगा 
उस नन्हे के सर पे 
मेरी टोपी रख देना

देखना उनको 
फिर इतनी हिम्मत आ जाएगी 
इक माँ फिर अपने बच्चे को 
वीर सैनिक बना पायेगी !!!
....s-roz

Thursday, June 23, 2016

ग़ज़ल

रात ख़ामोश लोरी सुनाने लगी
ऐ ख़्वाब ठहर नींद आने लगी


तस्सवुर की तितली सपनों आ
मेरे नग़मों में रंग सजाने लगी


चंद्रमा के आईने में चाँदनी मुझे
तेरा मासूम अक्स दिखाने लगी


उसे छूकर इधर जो आई पवन
कानों में सरगम गुनगुनाने लगी


रेज़ा रेज़ा महकती हूँ तेरी महक
ले गमक तेरी मुझमे सामने लगी 

S-roz